लोकतंत्र के नांव म जबले वोट के राजनीति शुरू होय हे, तबले कोनो भी नियम-कायदा या कहिन के विचारधारा ह जम्मो राजनीतिक पारटी मन ले तिरियावत जात हे। एकरे सेती अब कोनो भी पारटी ह अपन एजेण्डा ऊपर ईमानदार नइ दिखय। कहूं न कहूं वोमा लीपापोती या तिरिक-तीरा के चिनहा अवस कर के दिखथे। आम जनता के अधिकार अउ दु:ख पीरा के मापदण्ड म चालू होय नक्सल आंदोलन आज के समय म ए बात के सबले बड़े उदाहरण आय।
ए बात सही हे के जब एकर शुरूआत होइस त हुदराय-चुहकाय मनखे मन एला हाथो-हाथ उठाइन। एकरे सेती जतका भी आदिवासी या कहिन के जंगल-झाड़ी वाला क्षेत्र हे, तिहां सरकारी विकास के धारा या तो पहुंचेच नई पाए रिहीसे या फेर कम मात्रा म पहुंचे रिहीसे, वो क्षेत्र के मन ए नक्सल आन्दोलन ल, वोकर संग जुड़े मनखे मनला हाथो हाथ उठाइन। उनला अपन देवता बरोबर मान-सम्मान देइन, उंकर पूजा करीन। फेर जइसे-जइसे ये धारा ह अपन विचार ले भटकत गेइस तइसे-तइसे लोगन एला अत्याचारी मनखे मनके जमावड़ा के रूप म गोठियाए लागीन। एकर ले दुरिहा भागे अउ भगाए के उदिम करे लागीन। हमर छत्तीसगढ़ के बस्तर ह एकर साक्षात प्रमाण आय जिहां के रहवासी मन अब एकर ले हर हाल म मुक्ति चाहथें। काबर ते अब ये न्याय के मुखौटा पहिरे मनखे मन पूरा के पूरा अन्यायी अउ जुलमी बनगे हें।
मानवाधिकार ले जुड़े कुछ मनखे इंकर आजो पक्ष लेथें, फेर मैं अपन आंखी म देखे हावौं के एमन कोनो भी रूप ले पक्ष लेके लायक नइ रहिगे हें। एकरे सेती नक्सलवाड़ी नामक गांव म ए आन्दोलन ल शुरू करने वाला मनके एक सदस्य “कनु सन्याल” ह अपने जीनगी के आखिरी बेरा म कहे रिहीसे के ए आन्दोलन ह अपन विचारधारा ले पूरा के पूरा भटकगे हवय, तेकर सेती एला बंद कर देना चाही। ए बात बिल्कुल सही हे। मोला बस्तर के राहत शिविर अउ आस-पास के गांव-गंवई देखे के मौका मिले हे। लोगन संग मुंहाचाही के अवसर आए हे, उन नक्सली गतिविधि ले असकटागे हवयं, उंकर ले मुक्ति चाहथें। क्षेत्र के कुछ लोगन इंकर गतिविधि म शामिल हवयं त वोहर कोनो विचार धारा के सेती नहीं, भलुक डर के मारे शामिल हवयं, तेमा इनला उन मार झन डारयं, उंकर घर दुवार ल आगी झन बार देवयं। काबर ते अब अइसन सरलग देखे म आवत हे के जेन मन नक्सली मन ल कोनो भी किसम के सहयोग नइ देवत हें, उंकर घर-परिवार, मान-मरजाद अउ धन-दोगानी जम्मो के इन बंटमारी कर देथें। अभी तक अइसन कतकों घटना के जानबा पेपर के माध्यम ले मिलत रहिथे।
एक बड़ा दु:ख के बात ए हे के एमन पुलिस बल के साथ जेन किसम के व्यवहार करत हें, वो ह कोनो भी दृष्टि ले सही नइहे। हम जब ए कहिथन के देश के भीतर चलत सिद्घांत के नांव म आन्दोलन या आंतक ल कुचले खातिर सेना के उपयोग नइ करे जाना चाही, त संग म इहू चाहथन के अइनसन संगठन मन के द्वारा घलो इहां के जनता या पुलिस बल ल दुश्मन के श्रेणी म रखके विदेशी हथियार के माध्यम ले निशाना नइ बनाना चाही। अब तो इहू सुनब म आवत हे के नेपाल आदि देश के नक्सली मन इहां आतंक मचाए खातिर आए हवयं। निश्चित रूप ले अइसन बात ल जन हितकारी या देश के हित म नइ माने जा सकय। कोनो भी किसम के विचारधारा के अंग नई माने जा सकय। चीनी हथियार, नेपाली नक्सली आखिर का संदेश देना चाहथें एकर ले जुड़े लोगन मन? का वोमन इहां के शासन-प्रशासन म बइठे लोगन ल देशद्रोही समझथें ते खुदे देशद्रोही बनगे हवयं। ए देश ल इहां के जनता ल ए सवाल के जवाब उनला दे बर परही।
सुशील भोले
सहायक संपादक – इतवारी अखबार
41191, डॉ. बघेल गली
संजय नगर, टिकरापारा, रायपुर